Wednesday, 1 April 2015

बादलों का पहरा

यूं ही नही सुबह का रंग कुछ गहरा है,..
आज फिर सूरज पर बादलों का पहरा है,..
आंसुओं को इजा़जत नही है बहने की,..
दर्द पलकों पर कुछ इस तरह ठहरा है,... प्रीति सुराना

3 comments:

  1. बहुत खूब ... लाजवाब ...

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  2. वाह...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..

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  3. आपकी इस प्रस्तति का लिंक 02-04-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1936 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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