सुनो!!!
मैं बहुत अच्छे से जानती हूं,
तुम्हे,
तुम्हारी चालाकियों को,
और तुम्हारी शरारतों को,...
जानती हूं मैं
मेरे उलाहनों से बचने के लिये
तुम रख देते हो
झट से
मेरे होठों पर अपने होंठ,..
पर
तुम नहीं जानते
जिन उलाहनों से बचने कि लिये
अचानक से जो उमड़ता है
तुम्हारा प्यार,..
अकसर
मेरे उलाहनें होते हैं
उसी उमड़ते हुए प्यार को
अपनी जिंदगी के आंचल में सजाने के लिए,..
समझे "बुद्धु",... !!!,..... :) :) :) ,....प्रीति सुराना
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