Sunday, 28 September 2014

हां ! मुझे दर्द होता है,..

हां ! मुझे दर्द होता है,..

जब तुम मुस्कुराते हो 
पर नजरें चुराकर,..
जब तुम रोते हों 
मेरी बाहों में आकर,..


हां ! मुझे दर्द होता है,..

जब तुम बातें छुपाते हो 
बातें बनाकर,..
जब तुम सब  जताते हो 
कुछ न बताकर,..


हां ! मुझे दर्द होता है,..

जब मुझे आवाज देते हो 
खामोश रहकर,..
जब तुम तनहा से रहते हो 
मेरे साथ होकर,.. 


हां ! मुझे दर्द होता है,..

जब तुम खुद को सज़ा देते
मुझसे खफ़ा होकर,..
जब प्यार नहीं है तुम्हे मुझसे
ये बात कहते हो,....मुझे सीने से लगाकर,.....

हां ! मुझे दर्द होता है,..प्रीति सुराना

2 comments:

  1. पारस्परिक प्रेम की गहराई को दिखाती यह रचना बहुत ही भावपूर्ण है। बहुत अच्छा प्रयास। स्वयं शून्य

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