Sunday, 10 August 2014

मतभेद

हां!!

मैं तो यही मानती हूं...
मतभेदों के चलते 
कई परम्पराएं
बनती और बदलती है..

कई मान्यताएं
जुड़ती टूटती हैं..
कई सभ्यताएं जन्म लेती हैं
और इतिहास बनती हैं...

मतान्तर 
सृजन करते हैं..
सृष्टि मेँ विकास 
और संस्कृतियों के लिए अनेक नए रास्तों का...

पर 
मनो मे उपजा भेद 
सिर्फ और सिर्फ 
लाता है विनाश,..

टूटते हैं रिश्ते,.
मरता  है विश्वास,..
छूटती है आशा,..
खत्म हो जाती हैं सारी सम्भावनाएं,.

क्यूंकि 
बंद हो जाते हैं 
सारे रास्ते 
मन से मन तक के ..

सुनो !!
मतभेद कितने भी हो 
हमारे दरमियान,..
कभी मनभेद नही होने देँगे...

सुनो ना!!!
तुम
बंंधोगे मेरे साथ 
एक नए वादे में....??

या 
यहां भी है 
एक मतभेद 
हमारे बीच,

बोलो ना !!!!!.....प्रीति सुराना

7 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, धन्यबाद।

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  2. मन भेद जितना जल्दी ख़त्म हो जाए अचा होता है ... अर्थपूर्ण रचना ...

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  3. मत भेद हो तो हो मन भेद नहीं होना चाहिये।

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  4. Man me bhed hone se wastvikta hai rishtey fir mar hi jaate hai,,,yadi jivit rah b jaayein to apang hote hain..... Bahut sunder abhivyakti

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