Friday, 23 May 2014

ख्वाबों की डोर

वो जो बादलों की भीड़ में रहता था घिरा घिरा,
वो जो आसमान से अभी-अभी था टूटकर गिरा,
वो कोई तारा नही जो किसी के लिए टूट गया,
वो मेरे ख्वाबों की डोर का ही था सिर्फ एक सिरा.....प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment