Monday, 20 January 2014

इक राज़ की बात,..

सुनो !!
आज तुम्हे बताती हूं 
इक राज़ की बात,.. 
मैं खुश क्यूं हूं?
मैं जीवन के प्रति इतनी सहज क्यूं हूं?
मैं संतुष्ट क्यूं हूं?

जाने कब से पढ़ती-सुनती आई थी
जो हम बोएंगे वही काटेंगे,..
जो हम देंगे बदले में वही हम पाएंगे,..
जैसा हमारी सोच होगी
वैसी ही परिस्थितियां बनेंगी,..

तब से मैं बोती रही 
सबके दिलों में विश्वास के बीज,... 
देती आई सबको खुशियां,..
और मुस्कुराती रही हरदम,.. 
परिस्थितियां चाहे जैसी भी रही हो,..
इस विश्वास के साथ 
जो पढ़ा-सुना वो कभी तो सच होगा,..

फिर मैंने पढ़ा,..
अच्छे फलों के साथ खरपतवार भी उग आती है,
जिसके लिये उपचार की जरुरत होती है,...
कुछ देकर पाने की अपेक्षा ही उपेक्षा का कारण होती है,..
खुश रहना चाहते हो तो,
दो ही रास्ते हैं या तो परिस्थितियों को अपने अनुसार बदल लो
या परिस्थितियों के अनुसार खुद को बदल लो,..

तब से मैनें मान लिया 
विश्वास के साथ शक की खरपतवार प्रकृति की स्वाभाविक देन है,.. 
पर उसका उपचार किया जा सकता है,..
मैं आज भी देने की कोशिश करती हूं सबको खुशियां
पर अब अपेक्षा छोड़ दी बदले में खुशियां पाने की,..
मैनें कुछ परिस्थितियों को बदल दिया 
तो कुछ परिस्थितियों के लिये खुद को बदल लिया,..

अब
मैं 
खुश हूं,..
सफल हूं,.
सहज हूं,.
संतुष्ट हूं,..
मैं अब मैं समझ गई हूं,
उपरोक्त दोनों बातें एक दूसरे की पूरक हैं,..
अधूरी बात के अधूरे परिणाम से बचना है,
तो दोनों बातों को महत्व देना होगा,.. प्रीति सुराना

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