Thursday, 8 August 2013

पलकों का पहरा

सुनो !!

मैं
आज 
जरा भी नही रोई
जानते हो क्यूं???

क्यूंकि
मैं रोकर 
तुम्हारे दिए गमों को
हल्का नहीं करना चाहती,..

तुम्हारे 
दिए हुए दर्द
सौगात है मेरे लिए
जो किसी से बांट नही सकती,..

कहीं 
गम की घुटन 
मेरे दर्द को 
आंसुओं से न छलका दे,...

इसलिए
आज आंसुओं को 
आंखों में कैद करके
पलकों का पहरा लगा रखा है,....

मैंने ठीक किया ना,..

बोलो ना,.....????,.....प्रीति सुराना



2 comments:

  1. अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
    आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 09-08-2013 के .....मेरे लिए ईद का मतलब ग़ालिब का यह शेर होता है :चर्चा मंच 1332 .... पर भी होगी!
    सादर...!

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