ओस की बूंदों सी
ये उम्मीदें होती है
सूरज रूठा बैठा हो
बरखा सी रोती है
ताप अगर बढ़ जाए
अपना वजूद खोती है
सूरज बदली से झांके
फिर सपने बोती है
सपने कभी जो टूटे
रूठ कर सोती है
सिरहाने रख टूटे सपनें
आंसुओं से धोती है
ओस की बूंदों सी
ये उम्मीदें होती है
या उम्मीदों सी नाजुक
ये बेटियां होती हैं,......????
प्रीति सुराना
suraj jo rootha hai ...
ReplyDeletebheetar se toota hai
darta hai apne taap se ..
bana rahe vajood ous (ummeed ) ka
vo jal na jaye ....uske santaap se
Sach kaho to betiyan sab kuch hoti hain ...
ReplyDeleteDil ko choone wali rachna ....
खूबसूरत ....बेटियाँ बस ऐसी ही होती हैं
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