Saturday 9 March 2013

वो अनपढ़


चंद बातें हायकू में:---

मैंने सोचा कि
पी लूं ये गम कंही
तुम न ले लो,....
पर
मेरा मन भी
पिघलता रहा है
शमा के जैसा...

हकीकत या
अफसाना शमा को
मिटना तो है,...
पर
सपने ही थे
मंजिलें मिल जाती
जो सच होता,....

वो अनपढ़
पढ़ ही कंहा पाया
मेरा ये मन,....
पर
पढ़ता कैसे
मन चोरी से सब
छुपा लेता है,....,......प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment