टूटे हुए फूल देखकर रो देती हूं
उजडें हुए घर देखकर रो देती हूं
मैंने तबाही के कई नजारे है देखे
परिंदों के टूटे पर देखकर रो देती हूं
रोती हू हर आह पर,हर कराह पर
हर दर्द और गम देखकर रो देती हूं
चाहती हूं किसी पर तो असर हो
पर अपनो पे असर देखकर रो देती हूं,....प्रीत सुराना
अपनों पर असर देख रो देती हूँ ....
ReplyDeleteचाहती तो हूँ किसी पर असर हो !
अपनों के आगे सब कमजोर हो जाते हैं . एक द्वंद्व है कविता में !
्बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
ReplyDeletesamvedansheel man ki bhaavmay daastaan ...
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