Wednesday, 20 February 2013

सपने हैं घरौंदे,


सपने हैं घरौंदे,
जो उजड़ जाते हैं,....
मौसम हैं परिन्दे,
जो उड़ जाते हैं,....

क्यूं बुलाते हो,
खड़े होकर बहते हुए पानी में उसे,....

बहता हुआ पानी
गुज़रे हुए दिन
और गए हुए लोग
लौटकर कब आते हैं???????.........प्रीति 

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