सुनो!
अब
मैंने दर्द को दिल मे बसाकर
सीख लिया है आंसुओं को पलकों तले रोक लेना
और फिर दर्द में भी मुस्कुराना,
क्योंकि
तुम्हें पसंद है
न मेरी पनीली आंखें
जिनमें तुम्हें समंदर की गहराई नजर आती है
और
मेरे खामोश लब
जिस पर हल्की सी मुस्कान
जो तुम्हे गुलाब की बंद पंखुड़ियों से लगते हैं
खुश तो हो न तुम....प्रीति सुराना
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