ना चाहिए हार मुझे,ना कोई उपहार।
मुझे सबने मित्र कहा,यही बड़ा उपकार।।
मिले सबका अपनापन,जीवन का है ध्येय।
नैन मेरे भीग गये,देख सभी का स्नेह।।
लिखा न कोई गीत है,न ही कोई जज्बात।
मैने जो कुछ भी लिखा,बस थी "मन की बात"।
"मेरा मन" सबने पढ़ा,मान गजल या गीत।
अब है बस एक निवेदन,बनी रहे यह प्रीत।।,.....प्रीति
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