दर्द से तप्त मन के आंगन को
जज़बातों ने पिघलकर
ठंडक देने की कोशिश तो की थी
पर दर्द की तपिश ने बदल दिया
फिर से उन्हे
भाप बनाकर घने बादलों में
और तब उन उमड़ते-घुमड़ते
बादलों ने जिंदगी में
ऐसी नागवार सी उमस पैदा की
कि मजबूरन आज मेरे मन ने
उन्हें आंखों से
बरसने की इजा़जत दे दी,......प्रीति
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