Thursday, 23 February 2012

इंसान है यही?


इंसान मे कब आएगी इंसानियत,
आदमी में सारे गुण है इसके सिवा,
खाता है जानवरों की तरह,
चूसता है एक दूसरे का खून,
बोलता है इस तरह कि मानो गुर्रा रहा हो,

चालाकी लोमड़ी सी और काम गधों सा,
काया हाथी सी पर दिल चूहे सा,
और मन कौए सा काला,
आवाज़ कोयल सी पर ,
लगे मीठी और चुभे छुरी सी,

बनता है शेर,
पर लगता है शेर की खाल में भेड़िया,
चाल भेड़ सी चलता है,
नीयत बंदर बांट की,
उड़ना चाहता है पंछी की तरह,

आलसी अजगर की तरह,,
घोड़े की तरह दौड़ता है
जिंदगी की रेस में,
हर आदमी पता नही
है किस जानवर के भेष में,

सवाल मेरा है बस यही,
कब होगा ये सब सही,
जब इंसान के गुण जानवरों से नही तोले जाए
इंसानो को देखकर कह सकें 
कि इंसान है यही,.....प्रीति

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