तैरना जानती हूं मैं,
पर
पैरो में कोई जाल फंसा सा लगता है,
गजल के बोल निकलते हैं दिल से,
पर
जुबां पर शब्द पाबंद सा लगता है,
मानो सामने खुशियों का चमन हो,
पर
मातम साथ खड़ा सा दिखता है,
बगैर सांसों के जी रही हू जैसे,
अब
मुझे तुम बिन जीना ऐसा लगता है,...प्रीति सुराना
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