ये इंतजार अपनी पलकों में
छुपाए हर रात,
सोने के बहाने हम
खुद को जगाते हैं,
कभी तो आएंगे
वो मुझको जगाने,
पर वो तो
कभी नही आते हैं,
कितनी रातें बीत गई
बंद इन आंखों में,
जाने कबसे इनमे
कोई ख्वाब नही आते हैं,
समझा रखा है मैने
अपने आंसुओं को भी,
कि न बहा करें
रहे पलकों के दायरे में बंधकर,
क्योंकि रोज दरियाओं में
सैलाब नहीं आते हैं,....प्रीति
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