Sunday, 5 February 2012

जीवन की वास्तविकता


आदि और अंत 
के बीच गुजरता 
वर्तमान,

धरती और आसमान 
के बीच बसी 
प्रकृति,

सुख और दुख 
के बीच ठहरा हुआ 
एहसास,

सच और झूठ 
के बीच दबी हुई 
बात,

हां और नही 
के बीच मौजूद 
शायद,

आज और कल
के बीच बीतता हुआ 
समय,

जीवन और मृत्यु 
के बीच जी गई 
जिंदगी,

ठीक 
मेरे और तुम्हारे बीच
प्यार की तरह,

यानि 
सृष्टि की कोई भी कृति स्वतंत्र नही है,

एक के वजूद को महसूस करना हो,
दूसरे के अस्तित्व को स्वीकारना ही होगा,

चाहे सिक्के के दो पहलू की तरह,
चाहे रस्सी के दो सिरों की तरह,

यही जीवन की वास्तविकता है,....प्रीति सुराना

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