Monday 2 January 2012

आलम


दिल का आलम यूंही,
लफ्ज़ों में बयां कर गए हम,
फिर ये सोचकर घबराए,
कि ये क्या कर गए हम?
शायद अच्छा लगता है तुमको,
मेरा शरमां के निगाहें झुकाना,
ज़रा सी बात पर घबराकर,
तुम्हारी बांहों में आ जाना,
कभी सोचा न था फिर भी,
इकरार-ए-वफा कर गए हम,
दिल का आलम यूंही,
लफ्ज़ों में बयां कर गए हम,
इजहार-ए-मुहब्बत में,
कहीं रूसवा न हो जाए जमाना,
फिर हमारा ये प्यार कहीं,
बनकर न रह जाए फसाना,
तुम्हारी कसम बस,
यही सोचकर डर गए हम,
दिल का आलम यूंही,
लफ्ज़ों में बयां कर गए हम,.......प्रीति

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