Sunday, 25 December 2011

परिभाषा,


पहली बार न जाने कैसी,जागी मन में इक आशा,
स्नेह के इन अनुबंधों को,क्या दूं मैं कोई परिभाषा,

अब से पहले जाने कैसे,मैं जीती रही अंधियारों में,
जब सपनों से जागी,खुद को पाया इन उजियारों में,
मिलकर उनसे ऐसा लगा,दूर हुई हर एक निराशा,
स्नेह के इन अनुबंधों को,क्या दूं मैं कोई परिभाषा,

दूर खड़े वो तकते रहे,जाने कितने पल मुझको,
पर जाने क्यूं महसूस किया,बहुत पास मैने उनको,
समझ के भी मैं समझ न पाऊं,नेह बंधों की ये भाषा,
स्नेह के इन अनुबंधों को,क्या दूं मैं कोई परिभाषा,

स्पर्श को उनके महसूस किया,हवा के झोखों से तन ने,
रहते हैं वो मेरे दिल में,अहसास दिलाया धड़कन ने,
पर मैं कैसे कहूं कि मन मेरा अब तक प्यासा,
स्नेह के इन अनुबंधों को,क्या दूं मैं कोई परिभाषा,

टूट न जाए मेरी आशा,फिर से न हो कोई निराशा,
समझे वो मेरी भाषा,मन न रहे मेरा प्यासा,
हर पल रब से मांगूं यही,पूरी करदे मरी अभिलाषा,
स्नेह के इन अनुबंधों को,क्या दूं मैं कोई परिभाषा,

पहली बार न जाने कैसी,जागी मन में इक आशा,
स्नेह के इन अनुबंधों को,क्या दूं मैं कोई परिभाषा,....प्रीति


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