Monday, 26 December 2011

आईना




मेरे 
बिल्कुल सामने,
वो किसका चेहरा है?
कौन है वो?

पता नही क्यों,
उसकी नजरें 
मेरी नजरों से मिलते ही,
एकदम ठहर सी गई?

मुझको तब से 
वो कुछ ऐसे देख रही है,
जैसे उसे 
मुझसे कुछ कहना हो,

उसकी आंखों में 
शायद दर्द छुपा है,
या फिर उदासी,
या गम,

उसके होठ हिलते हैं 
कुछ कहने को,
फिर न जाने क्यूं 
थम जाते हैं?

लगता है जैसे,
उसकी आंखें 
रोना चाहती हैं,
पर रो नही पाती,.....

उसे देखकर
मैं न जाने किस सोच में डूबी,
या शायद 
गमगीन हो गई मैं,...

या उन ठहरी हुई नजरों के
गम,दर्द,मायूसी,
या आंसू या मासूमियत में 
खो गई मैं,...

फिर जैसे अचानक
मैं मानो ख्वाब से जागी,
देखा तो मेरे सामने 
आईना था,.....

तब मैंनें जाना,
वो जो 
आईने में
तस्वीर सा जड़ा था,,... 

हां!
वो मेरा ही चेहरा था,
सब जज़्बात मेरे ही थे,
क्योंकि मेरे सामने आईना था,......प्रीति सुराना

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