Friday, 26 March 2021

*संतोष कड़वा पर फल मीठा*

(भाव पल्लवन)

'संतोषी सदा सुखी'
'संतोष सबसे बड़ा धन'
'संतोष ही समाधान है'
'संतोष शान्ति का मूल है'
ये सभी बातें संतोष के साथ हमेशा से जुड़ी हैं। पर सुख, धन, समाधान, शान्ति क्या है? 
जो चाहिए था उसके लिए श्रम किया, अपेक्षा की, प्रयास किये, प्रतीक्षा की और अंत में परिणाम जो भी मिला उसे स्वीकार करके आगे बढ़ गए।
अप्राप्त के लिए दुखी न होना, प्राप्त में सुख ढूंढ लेना ही संतोष है तो ये कड़वा क्यों है?
'संतोष कड़वा फल मीठा'
कहावत अगर बनी है तो हज़ार बार सच साबित हुई होगी। क्योंकि कहावतें यूँ ही नहीं बनती।
मेरी बहुत तमन्ना थी कि डॉ. बनूं, परिस्थितियों के परिणाम स्वरुप डॉ. तो नहीं बन पाई लेकिन दुखी न होते अन्य विषय चुन लिया। क्या ये मेरा संतोष था? क्या मुझे अधूरे स्वप्न के साथ सुख की अनुभूति होनी चाहिए? क्या मेरा डॉ. न बन पाना मेरी संपन्नता है या डॉ न बनकर मैं ज्यादा शान्ति का अनुभव कर रही हूँ?
सच तो ये है कि इनमें से कुछ भी सही नहीं है। मुझे दुख हुआ, मन रोया, हिम्मत टूटी, निराशा हुई।
पर थोड़े ही समय में में जो हुआ उसे स्वीकार करके आगे की जीवन यात्रा शुरु की, शादी, बच्चे, जिम्मेदारियाँ और अंततः बीमारियाँ। यह संतोष की कड़वाहट थी। 
तो फिर मीठा फल क्या था? न सुख, न शान्ति, न वैभव न विकल्प? ये कैसा फल? यहाँ तो कहावत ही झूठी साबित हो गई? सबके साथ ऐसा नहीं होता यह सोचकर मैं आगे बढ़ गई। 
आज जब सोचने बैठती हूँ तो लगता है, जो-जो भी नहीं मिला या मैंने पाकर खो दिया, तब अगर हार मान ली होती, निराशा में डूब कर अनुचित कदम उठा लिया होता, या आगे कोई भी नया अवसर छोड़ दिया होता, कुछ न करने की ठान ली होती, किस्मत का रोना रोते जीवन बिता दिया होता या कोई अनुचित कदम उठाकर इहलीला ही समाप्त कर दी होती तो?
सन 2012 में हाईपोगुकोमिया के पहले अटैक के बाद जीवन को साहित्य के लिए समर्पित कर दिया। खूब पढ़ा, खूब लिखा, एम. ए. किया, पीएचडी की, 3000 पोस्ट ब्लॉग में, 13 किताबें, अनेको साझा संकलन, प्रकाशन, लंदन, कनाडा, एशिया, इंडियाबुक, omg, अमेजिंग इंडियन, सुपर वुमन जैसे अनेक रिकार्ड्स और सबसे बड़ी बात आज मैं अपने नाम के आगे डॉ. लिखने की अधिकारी भी हूँ। 
क्या हम इसे कड़वे संतोष का मीठा फल कह सकते हैं?
एक कहावत ये भी है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। तब वो हुआ होता तो आज मैं ये सब नहीं लिख पाती, ये सब कुछ समय के गर्भ में था। कोई नहीं जानता कि अगले पल में कुछ होगा, बस हम कामना कर सकते हैं और उचित दिशा में उचित प्रयास, परिणाम केवल उस समय, उस काल और उस परिस्थिति पर निर्भर करता है जिसपर किसी का बस नहीं चलता।
ऐसे में हम सोच लें किस्मत को यही मंजूर था, हमारे ही प्रयासों में कोई कमी रह गई, या आगे कुछ और अच्छा होना है इसलिए आज ये हुआ तो बहुत आसानी से संतोष का कड़वा घूँट पीकर आगे बढ़ सकते हैं। जरुरी नहीं मेरी बात शत प्रतिशत सही हो क्योंकि हर बात के लिए नजरिया तन, मन, धन और जन इन चार कारकों से बनता है, जिस कारक का प्रतिशत ज्यादा होगा बातों का अर्थ उस कारक के अनुरूप ढल जाएगा क्योंकि ये उसका गुण है।

चिंता के बाद चिन्तन का सार यही मिला हर बार,
जो खोया मेरा नहीं था, जो भी मिला किया स्वीकार,
धन्य-धन्य संतोष धन, हो तुम कटु पर औषधिमय हो,
संभाला, समझाया, वर्तमान दिखाया, इस मीठे फल का आभार।।

डॉ प्रीति समकित सुराना

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