खुश हूँ तब तो मुसकुरा रही हूँ
जो बीता हँसकर सुना रही हूँ
तुम मुझसे नजरें नही मिलाओ
समझोगे नज़रें चुरा रही हूँ
पलकें हैं शर्म से झुकी-झुकी सी
क्यूँ लगता है कुछ छुपा रही हूँ
धड़कन मेरी तुम कभी न सुनना
वो सुनना जो गुनगुना रही हूँ
आँखे कब भीगी पता नहीं है
जो मन में है वो बता रही हूँ
*दिल के कोरे कागज पर* लिखकर
कागज वो भीगा सुखा रही हूँ
तोड़ी न कभी प्रीत की रस्में भी
दिल से सब नाते निभा रही हूँ
डॉ प्रीति समकित सुराना


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