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अंतस से पूरी कोशिश की रोकूँ बेमौसम सावन को, लेकिन समय के खेल निराले वही चलाता जीवन को, कोशिश ही है हाथ हमारे बस मन कोशिश से न हारे, तिनका-तिनका जोड़ रही हूँ फिर से अपने बिखरे मन को,...!
प्रीति सुराना
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