Saturday, 29 December 2018

हाँ! रोती हूँ,..!

हाँ!
रोती हूँ कभी-कभी बच्चों सी
बिलखकर
जब भावों का आवेग
रोके नहीं रुकता
लेकिन
अक्सर
घर के किसी कोने में
या तेजी से नल चालू करके
कभी बारिश में भीगकर
कभी प्याज काटने
या धूल और धुएँ की एलर्जी के बहाने
और भी जो-जो बहाने बना सकती हूँ
पर
कभी-कभी
मैं बिलखकर रोती हूँ
और सचमुच नहीं ढूंढती कोई भी बहाना
सिर्फ चाहती हूँ
थोड़ा सा प्यार
थोड़ा सा अपनापन
और
बहा देना सारा अवसाद,
गिले-शिकवे,.
आज दर्द ने सारी हदें तोड़ दी है
सुनो!
तुम्हारे कांधे पर सिर रखकर
रोने की बेइंतहा तड़प
ये भी प्यार ही है न!!!

प्रीति सुराना

No comments:

Post a Comment