आँसू का पीड़ा से नाता
सुख में भी पर साथ निभाता
समय नहीं बताता कुछ पर
समझे आँसू मन की बोली,..
क्या खोया और क्या-क्या पाया
अंत मे हासिल कुछ नहीं आया
बही-खाते कर्मों के खोले तो
अंतस की गठरी भी टटोली,..
आना-जाना जीवन का खेला
अनजान नहीं इस सच से कोई
फिर भी आशा के दीप जलाती
साँसे भी कितनी हैं भोली,..
आज आँसुओं ने की मनमानी
बहुत कहा पर एक न मानी
बार-बार एहसास दिलाती
द्वार खड़ी प्राणों की डोली,..
धूप-छाँव दोनों की सहेली
जीवन गोधूलि बड़ी सुनहली,
प्राण पखेरू उड़ने को आतुर
सुख-दुख खेले आँख-मिचौली,..
प्रीति सुराना
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