आप से नज़रे चुराना आ गया
आपसे बातें छुपाना आ गया
पीर को मन की दबाना था कठिन
नम नयन से मुसकुराना आ गया
रोज ही सहते सितम सबके यहाँ
और फिर सबकुछ भुलाना आ गया
सुबह कैसी थी हमें मालूम क्या
रात सा जीवन बिताना आ गया
प्रीत की राहें भला कब थी सरल
मुश्किलों के पार जाना आ गया
डॉ. प्रीति सुराना
सुन्दर प्रस्तुति
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