Thursday, 15 April 2021

*क्या संबंधों में स्थिरता के चार सेतु समझ, सहयोग, सहभोज, संवाद हैं?*

नदी के दो किनारों की तरह दो स्वतंत्र व्यक्तिव मिलकर जब अपनी रिक्तता को स्नेह जल से भरते हैं तो प्रवाहित स्नेह से उपजे अनेक संबंधों को बांधने वाला सेतु बहुत मजबूत हो यह रिश्तों की स्थिरता और प्रगाढ़ता के लिए अनिवार्य है।
कल जब यह विषय आलेख के लिए चुना तब से मस्तिष्क में बार-बार मेरे दोनों परिवार यानि घर और अन्तरा शब्दशक्ति का नाम कौंधता रहा।
मेरी समझ से मैंने 'स' को 'स' से जोड़ने का प्रयास किया जिससे  'स' का दशक स्वतः ही तैयार हो गया। आप सोच रहे होंगे 'स' का दशक आखिर क्या?
तो सबसे पहले शीर्षक से शुरू करते हैं 
 *स्नेह* से उपजे *संबंधों* की *स्थिरता* हेतु मजबूत सेतु *समझ* से उपजा सामंजस्य, सामंजस्य से पनपी *सहयोग* की भावना जिससे जीवन नैय्या का तैरना आसान हो जाता है। साथ बैठ कर भोजन करने से एक दूसरे की रुचि-अरुचि, स्वाद, स्वास्थ्य और स्वभाव के साथ मनः स्थिति का अंदाजा लगता है। *सहभोज*, स्नेहभोज, प्रीतिभोज का आयोजन खुशी के अवसर पर किया जाना मूलतः एक दूसरे के सुखदुख में शामिल होने का प्रतिकात्मक स्वरूप ही है।
और सब से अंतिम और सबसे  से महत्वपूर्ण बात है *संवाद*, समझेंगे, मिलेंगे और जानेंगे तो बात होगी, और अटल सत्य है ये कि बात करने से ही बात बनती है। संवादहीनता सारे विकल्प बंद कर देती है। संवाद जारी रहे तो गुस्से में भी मन की बात बाहर आ जाती है और बात बाहर आने से समस्या को सुलझाया जा सकता है, संवादहीनता कुंठा को जन्म देती है और कुंठा सबसे दुष्कर गरल है।
अब जाहिर सी बात है जो *स्नेह के संबंध* हैं उनकी *स्थिरता* का *सेतु* यदि *समझ*, *सहयोग*, *सहभोज* और *संवाद* से बना हो तो *सभ्यता*, *संस्कार* और *संस्कृति* से परिपूर्ण मजबूत परिवार का निर्माण तय है और जिस देश में ऐसे परिवार हों उसकी *अखंडता और अक्षुण्णता अखंडित* ही रहेगी।
मैंने कोशिश की है हमेशा घर और अन्तरा शब्दशक्ति परिवार को इस स्नेहसेतु से बांधने की। तो आ रहे हैं न आप सब एक बार मेरे आंगन में स्नेहभोज और स्नेह संवाद के लिए क्योंकि हम सब एक परिवार हैं। हैं न!

डॉ प्रीति समकित सुराना

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