अचानक याद आया
उस होली का वो पल
जिसमें
मैं पानी सी तरल हुई
तुम रंग से घुले मुझमें
कुछ इस तरह
कि मेरी रंगत बदल दी तुमने
फिर
कभी कोई
अलग न कर सका हमें
जैसे हों
जिस्म मैं रुह तुम
दिल मैं धड़कन तुम
जिंदगी मैं सांसें तुम
तुम मैं और मैं तुम
पानी में घुले रंग से,...!
डॉ प्रीति समकित सुराना
0 comments:
Post a Comment