बेईमानी आखिर कब तक चलती है?
झूठ की राहें कहाँ तक चलती है?
शायद झूठों के संग-संग ही चलती है।
लुटेरों की उम्र कितनी होती है?
आखिर में बरबादी ही साथ चलती है।
आंखों वाले ही अंधे हैं जब तक
मक्कारी भी तब तक चलती है?
पत्रकार, पुलिस और संत मिले
तो धोखाधड़ी भी सारी चलती है।
अच्छाई हारी मक्कारों की भीड़ में,
बुराई की दुकान बेखौफ चलती है।
राजनीति का मंच हो पूरा जीवन,
सत्ता भी दोगले कंधों पर चलती है।
छोड़ो जाने दो समय ही देगा जवाब,
"देखें बेईमानी आखिर कब तक चलती है?"
प्रीति समकित सुराना
0 comments:
Post a Comment