हाँ!
मैं भी हूँ
दशानन
मेरे नौ चेहरों पर
हैं मुखौटे मेरे मुख पर दसों रसों के
शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर,
भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत
और वात्सल्य रस
जिस भी भाव या रस के साथ देखता है
मुझे सामने वाला
मैं लगती हूँ बिल्कुल वैसी ही मानो
नज़र या नजरिया नहीं
सामने आईना हो
लेकिन
मुझे सचमुच
वही जनता है
जो दिल से दिल तक पहुँचता है,..!
इसलिये बार-बार कहती हूँ तुमसे
चेहरा क्या देखते हो,
दिल में उतर कर देखो न,..!
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment