Tuesday, 3 December 2019

ग्वालियर : मध्य प्रदेश का एक शहर(यात्रा संस्मरण)

ग्वालियर : मध्य प्रदेश का एक शहर
(यात्रा संस्मरण)

ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है। भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर म.प्र. राज्य के उत्तर में स्थित है। यह शहर और इसका प्रसिद्ध दुर्ग उत्तर भारत के प्राचीन शहरोँ के केन्द्र रहे हैं। यह शहर गुर्जर प्रतिहार राजवंश, तोमर तथा बघेल कछवाहों की राजधानी रहा है। इनके द्वारा छोड़े गये प्राचीन चिन्ह स्मारकों, किलों, महलों के रूप में मिल जाएंगे। सहेज कर रखे गए अतीत के भव्य स्मृति चिन्ह इस शहर को पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं।

आज ग्वालियर एक आधुनिक शहर है और एक जाना-माना औद्योगिक केन्द्र है। ग्वालियर को गालव ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है।

ग्वालियर को पीएम नरेंद्र मोदी के प्रमुख स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होने वाले सौ भारतीय शहरों में से एक के रूप में चुना गया है। 

नामकरण

ग्वालियर शहर के नाम के पीछे एक इतिहास छिपा है। छठी शताब्दी में एक राजा हुए सूरजसेन पाल कछवाह, एक बार वे एक अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हो मृत्युशैया पर थे, तब ग्वालिपा नामक सन्त ने उन्हें ठीक कर जीवनदान दिया। उन्हीं के सम्मान में इस शहर की नींव पडी और इसे नाम दिया ग्वालियर।

ग्वालियर का क़िला

ग्वालियर किले का निर्माण गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने 840 ई. मे किया था।

इतिहास

राजा मिहिरकुल का सिक्का, जो लगभग सन 520 में ग्वालियर पर राज करते थे।

ग्वालियर शिलालेख में शून्य, जैसा कि दो संख्याओं (50 और 270) में देखा जा सकता है। अनुमान लगाया जाता है कि ये अंक 9वी शताब्दी में अंकित किए गए थे।
ग्वालियर किले में चतुर्भुज मंदिर एक लिखित संख्या के रूप में शून्य की दुनिया की पहली घटना का दावा करता है। हालाँकि पाकिस्तान में भकशाली शिलालेख की खोज होने के बाद यह दूसरे स्थान पर आ गया। ग्वालियर का सबसे पुराना शिलालेख हूण शासक मिहिरकुल की देन है, जो छठी सदी में यहाँ राज किया करते थे। इस प्रशस्ति में उन्होंने अपने पिता तोरमाण (493-515) की प्रशंसा की है।

ग्वालियर किले के अंदर सिद्धांचल गुफाओं में जैन प्रतिमाएँ।

1231 में इल्तुतमिश ने 11 महीने के लंबे प्रयास के बाद ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और तब से 13 वीं शताब्दी तक यह मुस्लिम शासन के अधीन रहा। 1375 में राजा वीर सिंह को ग्वालियर का शासक बनाया गया और उन्होंने तोमरवंश की स्थापना की। उन वर्षों के दौरान, ग्वालियर ने अपना स्वर्णिम काल देखा। इसी तोमर वंश के शासन के दौरान ग्वालियर किले में जैन मूर्तियां बनाई गई थीं।

ग्वालियर किले में मान मंदिर महल

राजा मान सिंह तोमर ने अपने सपनों का महल, मान मंदिर पैलेस बनाया जो अब ग्वालियर किले में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। बाबर ने इसे " भारत के किलों के हार में मोती" और "हवा भी इसके मस्तक को नहीं छू सकती" के रूप में वर्णित किया था। बाद में 1730 के दशक में, सिंधियों ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश शासन के दौरान यह एक रियासत बना रहा।

5 वीं शताब्दी तक, शहर में एक प्रसिद्ध गायन स्कूल था जिसमें तानसेन ने भाग लिया था।ग्वालियर पर मुगलों ने सबसे लंबे समय तक शासन किया और फिर मराठों ने।
क़िले पर आयोजित दैनिक लाइट एंड साउंड शो ग्वालियर किले और मैन मंदिर पैलेस के इतिहास के बारे में बताता है।

1857 का विद्रोह

1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ग्वालियर ने भाग नहीं लिया था। बल्कि यहाँ के सिंधिया शासक ने अंग्रेज़ों का साथ दिया था। झाँसी के अंग्रेज़ों के हाथ में पड़ने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर भागकर आ पहुँचीं और वहाँ के शासक से उन्होंने पनाह माँगी। अंग्रेज़ों के सहयोगी होने के कारण सिंधिया ने पनाह देने से इंकार कर दिया, किंतु उनके सैनिकों ने बग़ावत कर दी और क़िले को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। कुछ ही समय में अंग्रेज़ भी वहाँ पहुँच गए और भीषण युद्ध हुआ। महाराजा सिंधिया के समर्थन के साथ अंग्रेज़ 1,600 थे, जबकि हिंदुस्तानी 20,000। फिर भी बेहतर तकनीक और प्रशिक्षण के चलते अंग्रेज़ हिन्दुस्तानियों पर हावी हो गए। मार्च 1858 में रानी लक्ष्मीबाई भी अंग्रेज़ों से लड़ते हुए ग्वालियर में वीरगति को प्राप्त हो गईं। वहीं तात्या टोपे और नाना साहिब वहाँ से फ़रार होने में कामयाब रहे। रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान आज भी पूरे भारत में याद किया जाता है।

ग्वालियर रियासत

ग्वालियर पर आज़ादी से पहले सिंधिया वंश का राज था, जो मराठा समूहों में से एक थे।इसमें 18वीं और 19वीं शताब्दी में ग्वालियर राज्य शासक, 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के सहयोगी और स्वतंत्र भारत में राजनेता शामिल थे।

ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थल

मुरार: 

पहले यह सैन्य क्षेत्र हुआ करता था, जिसे मिलिट्री ऑफिसर्स रेजिडेंशियल एरिया रिजर्व्ड (M.O.R.A.R.) कहा जाता था और संक्षेप में मोरार। मोरार शब्द का लोप होकर मुरार हो गया।

थाटीपुर: 

रियासत काल में यहाँ सेना के सरकारी आवास थे, जिस का नाम थर्टी फोर लांसर था। आज़ादी के बाद यह आवास मध्य प्रदेश शासन के अधीन आ गए, जिसे थर्टी फोर की जगह थाटीपुर कहा गया।

सहस्त्रबाहु मंदिर या सासबहू का मंदिर :

ग्वालियर दुर्ग पर इस मंदिर के बारे में मान्यता है की यह सहत्रबाहु अर्थात हजार भुजाओं वाले भगवन विष्णु को समर्पित है। बाद में धीरे-धीरे सासबहू का मंदिर कहा जाने लगा।

गोरखी: 

पुराने रजिस्ट्रार ऑफिस से गजराराजा स्कूल तक सिंधियावंश ने रहने का स्थान बनाया था। यही उनकी कुल देवी गोराक्षी का मंदिर बनाया गया। बाद में यह गोरखी बन गई।

पिछड़ी ड्योढ़ी: 

स्टेट टाइम में महल बनने से पहले सफ़ेद झंडा गाड़ा जाता था। जब महल बना तो इसके पीछे की ड्योढ़ी और बाद में पिछड़ी ड्योढ़ी कहलाने लगी।

तेली का मंदिर: 

८ वी शताब्दी में गुर्जर राजा के सेनापति तेल्प ने दुर्ग पर दक्षिण और उत्तर भारतीय शैली का मंदिर बनवाया था, जिसे तेल्प का मंदिर कहा जाता था। आज इसे तेली का मंदिर कहा जाता है।

पान पत्ते की गोठ: 

पूना की मराठा सेना जब पानीपत युद्ध से पराजित होकर लौट रही थी, तब उसने यहीं अपना डेरा डाल लिया। पहले इसे पानीपत की गोठ कहा जाता था। बाद में यह पान पत्ते की गोठ हो गई।

डफरिन सराय: 

१८ वी शताब्दी में यहां कचहरी लगाई जाती थी। यहां ग्वालियर अंचल के करीब ८०० लोगों को लार्ड डफरिन ने फांसी की सजा सुनाई थी, इसी के चलते इसे डफरिन सराय कहा जाता है।

गुरुद्वारा बंदी छोड़:

गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ 6 वें सिख गुरु हरगोबिंद साहिब का स्मारक है। इतिहास के अनुसार राजा जहाँगीर ने गुरु गोबिंद साहिब को ग्वालियर के किले में बंदी बनाया था। उन्हें लगभग दो साल तक कैद में रखा गया। उन्हें उनकी सैन्य गतिविधियों के लिए कैद किया गया था।
जब उन्हें कैद से मुक्त किया गया तो उन्होंने अपने साथ 52 कैदियों को छोड़ने की प्रार्थना की जो हिंदू राजा थे। जहाँगीर ने आदेश दिया कि जो भी गुरु का जामा पहनेगा उसे छोड़ दिया जायेगा।
अत: गुरु का नाम दाता बंदी छोड़ पड़ा। गुरु हरगोबिंद सिंह की याद में वर्ष 1970 में गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ बनाया गया। यह देश भर के सिखों के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है।

सूर्य मंदिर:

भारत के प्रसिद्ध सूर्य देवता के मंदिर में एक है मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्तिथ सूर्य मंदिर। हर वर्ष लाखो की संख्या में भक्त यहा भगवान सूर्य के दर्शन करने आते है।

मंदिर का निर्माण और इतिहास

इस मंदिर का निर्माण उड़ीसा के सूर्य मंदिर कोणार्क के रूप में ही किया गया है। 1988 में जी. डी. बिरला के प्रयासों से यह भव्य निर्माण हुआ। मंदिर की वास्तुकला कोणार्क मंदिर की तरह ही है जिसमे लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग किया गया है। मंदिर परिसर में देवी देवताओ की सुन्दर और आकर्षित नक्काशी की गयी है। यहाँ अति शांति और स्वच्छ वातावरण मन को हर लेता है।

सूर्य मंदिर की विशेषता

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है की जब सूर्य पूर्व से उदय होता है तब सबसे पहले उसकी किरण यहा लगी सूर्य प्रतिमा पर गिरती है। इससे यह मंदिर और मूर्ति अत्यंत जाग्रत हो जाती है।

सूर्य के सात घोड़े खीच रहे है रथ

मंदिर को सामने से देखने पर लाल बलुआ पत्थर में सात घोड़े मंदिर रूपी रथ को पहियों के माध्यम से खिंच रहे है। मंदिर के आगे सुन्दर बगीचा बना हुआ है।

अनोखा घंटा नाद

भगवान सूर्य को पूर्व में पर्वत के समान और पश्चिम में अग्र के समान बताया गया है। भगवान सूर्य ज्योतिष गण के सम्राट बताए गए हैं। भगवान कौंशुमान के इस मंदिर में घंटा नाद विशेष प्रकार से किया जाता है। घंटानाद करने के लिए घंटा काफी उंचाई पर लगाया गया है। घंटे को हल्की चेन के माध्यम से खींचा जाता है और घंटा बजता है। यह घंटानाद मंदिर में विशेष शक्ति का निर्माण करता है।

मोहम्मद गौस और तानसेन का मकबरा ग्वालियर

ग्वालियर में स्तिथ तानसेन का मकबरा ही वो जगह है जहाँ अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक मियाँ तानसेन 400 साल से आराम कर रहे है, यानि के यंहा दफ़न है. अकबरनामा के मुताबिक सन 1562 से 1586 तक तानसेन उनके दरबार में संगीतकार थे और ये समय मुग़ल इतिहास का सबसे स्वर्णिम समय था। संगीत सम्राट रहे तानसेन की नगरी ग्वालियर के बारे में कहा जाता है की यंहा बच्चे रोते है तो सुर में, पत्थर लुढ़कते है तो ताल में।
ग्वालियर शहर इन्ही एतिहासिक धरोहर के कारण लोगो में प्रचलित है यंहा भारतीय और इस्लामिक शैली में बनी कई प्राचीन इमारते है। मोहम्मद गौस और तानसेन का मकबरा दोनों एक ही जगह पर है, इसका कारण है मरते समय उनकी आखरी इच्छा थी की उनको वहीँ दफनाया जाए जहां उनके गुरु दफ़न है।

यात्रा अनुभव सार

कुल मिलाकर ग्वालियर एक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है जहाँ का भ्रमण भारतीय संस्कृति और इतिहास के साथ-साथ नैसर्गिक सौंदर्य दर्शन जीवन को आनंद से भर सकता है।

संकलनकर्ता
प्रीति समकित सुराना
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति

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