सुनो!
बैठो कुछ पल पास मेरे
पढ़ना चाहती हूँ वो
जो अनकहा सा
झलकता है तुम्हारी आँखों में,..!
न-न
तुम कुछ न कहना
बस रखना अपनी गर्म हथेलियों में
मेरा हाथ,
तुम्हारी उंगलियों की पोरों से
बातें उगलवाना मुझे आता है,..!
बहुत हुआ अनमनापन,
अब आँखों को आँखों से
हाथों को हाथों से,
धड़कनों को धड़कनों से करने दो बातें
समय का अभाव
कभी प्रेम का प्रभाव कम नहीं करता,..!
क्या हुआ
जो उम्र का पड़ाव
कुछ कदम आगे बढ़ गया
क्या हुआ जो हम अंगूठाछाप हैं
सोच लो न हमारा रिश्ता
कुछ और कक्षाएँ पढ़ गया,..!
चलो
जीते है
ख्वाहिशों को
फिर से
जिंदगी की तरह,...!
प्रीति सुराना
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