Tuesday, 17 December 2019

आँखों से कोसो दूर है नींदें


आँखों से कोसो दूर है नींदें, मेरे ख़्वाब मुझे सोने नहीं देते।
बन सकूँ औरों के लिए मिसाल, ये इरादे मुझे रोने नहीं देते।

ऐसा नहीं है कि अब मुझे, दर्द नहीं होता किसी बात से,
लाख चाहूँ तो भी नर्म जज़्बात मुझे, पत्थर होने नहीं देते।

बहा लूँ सबसे छुपाकर कुछ आँसू, कि देख भी न पाए कोई,
अजनबियों की भीड़ में भी लोग, खाली ऐसे कोने नहीं देते।

गुमनाम होकर खुद को भूल जाने का भी, मन करता है कभी
पर अब भी कुछ अपने हैं आसपास, जो मुझे खोने नहीं देते।

अब ये दिन और ये रातें कटती नहीं, बोझ सी लगती है जिंदगी
यादें, कसमें, वादे उठा लेते हैं, ये बोझ भी ढोने नहीं देते।

सोचती हूँ अरमानों की नई फसल उगा लूँ, फिर से मन के आंगन में,
पर 'प्रीत' कुछ पुराने अधूरे ख्वाब, नए ख्वाब बोने नहीं देते।

प्रीति सुराना

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