कुछ पुराने ज़ख्मों की आज तुरपन उधड़ गई।
छिपी हुई रक्तरंजित शिराएं अचानक उघड़ गई।
सालों से कैद थी जो दिल में वो बातें निकल गई,
सदियों बाद दबे भावों में फिर से पीड़ा उमड़ गई।
न संभले पर बहते अश्कों को बहुत संभाला था,
अश्क तो अश्क, धड़कन और सांसें भी उखड़ गई।
खोकर खुद को जिंदा थी न जाने अब तक कैसे?
एक ही पल में ही लगा कि जैसे दुनिया उजड़ गई।
प्रेम-भरोसा, रिश्ते-नाते, सुनी थी जितनी भी बातें,
पढ़ी-सुनी वो सारी बातें बिल्कुल मन से उतर गई।।
प्रीति सुराना
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