Thursday, 12 December 2019

ऐसे न मुझे तुम देखो!

ऐसे न मुझे तुम देखो!

हाँ!
मानती हूँ तुम्हारी बात
जब तुम कहते हो
अच्छा सोचो
सकारात्मक रहो
और मैं करती हूँ कोशिश
पूरे मन से
पर ठीक तभी
रिसते घाव टीसने लगते हैं
भीगी पलकें झपकपर सूखा भी लूँ
तुमसे नज़रें चुरा भी लूँ
न कहूँ वो जो मन में आता है अचानक
पर सच कहूँ
अपने थके कदमों को 
जब और कमजोर होता महसूस करती हूँ
तो कसके थाम लेना चाहती हूँ
तुम्हारी हथेली
और बस
ठीक तभी
तुम पढ़ लेते हो
मेरी हँसती, चहकती, बोलती आँखों का दर्द
सुनो!
इसीलिए कहती हूँ 
ऐसे न मुझे तुम देखो,...!

प्रीति सुराना

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