मैं
समझाती हूँ
रोज
मन को
न रुठ
न मचल
न तड़प
न रो
वो चाँद है
वो तेरा नहीं है
आसमान का है
सारे जहान का है
पंजो पर उचककर
सीढ़ियों से चढ़कर
आसमान में उड़कर
उसका मिलना नामुमकिन है
चाँद तक पहुँचना
और
चाँद को पाना
दो अलग बातें हैं
और उसपर भी
सबसे बड़ी बात
तू धरा है
जिसपर सारा आसमान धरा है
तो पीर कैसी
जो कुछ भी है सृष्टि में
वो सब कुछ
तुझसे ही जुड़ा है,..!
सच कहूँ
तो चाँद के लिए मचलना
सिर्फ एक बहाना है
दरअसल तुम्हारा ध्यान खुद पर लाना है
सुनो!
मुझे सिर्फ तुम्हारा प्यार
और
तुम्हारा साथ पाना है।
प्रीति सुराना
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