हाँ!
आँचल की कोर में
बंधी है
आज भी एक गाँठ
मन्नत की,
जाते हुए लम्हों की कसक साथ लिए,..!
ख्वाहिश है
जो जीया
उनमें से हर खुशनुमा पल का अंश
दामन में रहे हमेशा
तुम्हारी याद बनकर,..!
जो बीत गया
या
बीत रहा है
उसकी नींव पर बनाना चाहती हूँ
उम्मीदों का एक नीढ़
आने वाले कल में,..!
सुनो!
"तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवाज़"
प्रीति सुराना
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