Friday, 22 November 2019

औघड़नाथ मंदिर, मेरठ एक अनूठा स्थान

औघड़नाथ मंदिर, मेरठ एक अनूठा स्थान

यहाँ आकर बहुत शांति तो मिलती है साथ ही मिलती है मंदिर से जुड़ी अनेक किवदंतिया, मान्यताएं और ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी। 

बाबा औंघड़नाथ का मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ महानगर में छावनी क्षेत्र में स्थित है चूंकि यहां भगवान शिव स्वरूप में विद्यमान हैं, इस कारण इसे औंघडनाथ मंदिर कहा जाता है।  

यह मान्यता है, कि इस मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है। यानि यह शिवलिंग स्वयं पृथ्वी से बाहर निकला है। तभी यह सद्य फलदाता है। भक्तों की मनोकामनाएं औंघड़दानी शिव स्वरूप में पूरी करने के साथ साथ ही शांति संदेश देते हैं। इसके साथ ही नटराज स्वरूप में क्रांति को भी प्रकाशित करते हैं।

इस मंदिर की स्थापना का कोई निश्चित समय ज्ञात नहीं है, लेकिन जनश्रुति के अनुसार यह प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से भी पहले से शहर और आसपास के लोगों के बीच वंदनीय श्रद्धास्थल के रूप में विद्यमान था। वीर मराठाओं के इतिहास में अनेकों पेशवाओं की विजय यात्राओं का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने यहाँ भगवान शंकर की पूजा अर्चना की थी।

यह मंदिर श्वेत संगमरमर से निर्मित है, जिस पर यथा स्थान उत्कृष्ट नक्काशी भी की गई है। बीच में मुख्य मंदिर बाबा भोलेनाथ एवं माँ पार्वती को समर्पित है, जिसका शिखर अत्यंत ऊँचा है। उस शिखर के ऊपर कलश स्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान एवं भगवती की सौम्य आदमकद मूर्तियाँ स्थापित हैं व बीच में नीचे शिव परिवार सिद्ध शिवलिंग के साथ विद्यमान है। इसके उत्तरी द्वार के बाहर ही इनके वाहन नंदी बैल की एक विशाल मूर्ति स्थापित है। गर्भ गृह के भीतर मंडप एवं छत पर भी काँच का अत्यंत ही सुंदर काम किया हुआ है।

*भगवान शिव के आशीर्वाद से शुरू हुई थी 1857 की क्रांति*

वैसे तो देश के बड़े-बड़े मंदिर किसी ना किसी एतिहासिक घटना से जुड़े हुए हैं। लेकिन इस शिव मंदिर से देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से सीधा जुड़ा हुआ है। इतिहासकारों की मानें तो इसी मंदिर में देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बीज पड़े थे। 

मंदिर में बना था क्रांति का सबसे बड़ा कारण

औघडऩाथ शिव मंदिर के बारे में वैसे तो देश के कोने-कोने में सभी लोग जानते हैं। लेकिन इस बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है कि इसी मंदिर से 1857 की क्रांति का बिगुल बजा था। जानकारों की मानें तो बंदूक की कारतूस में गाय की चर्बी का इस्तेमाल होने के बाद सिपाही उसे मुंह से खोलकर इस्तेमाल करने लगे थे। तब मंदिर के पुजारी ने उन जवानों को मंदिर में पानी पिलाने से मना कर दिया। ऐसे में पुजारी की बात सेना के जवानों को दिल पर लग गई। उन्होंने उत्तेजित होकर उन्होंने 10 मई, 1857 को यहां क्रांति का बिगुल बजा दिया। जानकारों के अनुसार औघडऩाथ शिव मंदिर में कुएं पर सेना के जवान आकर पानी पीते थे। इस ऐतिहासिक कुएं पर आज भी बांग्लादेश के विजेता तत्कालीन मेजर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा द्वारा स्थापित शहीद स्मारक क्रांति के गौरवमय अतीत का प्रतीक उल्लेखित है। इस मंदिर के आसपास के शांत वातावरण और गोपनीयता को देखकर अंग्रेजों ने यहां अपना आर्मी ट्रेनिंग सेंटर बनाया था। भारतीय पल्टनों के समीप होने की वजह से अनेक स्वतंत्रता सेनानी यहां आकर ठहरते थे। यहीं पर भारतीय पल्टनों के अधिकारियों से उनकी गुप्त बैठक हुआ करती थीं। इनमें हाथी वाले बाबा अपना विशिष्ट स्थान रखते थे।

मराठा किया करते थे पूजा पाठ  

यह मंदिर वीर मराठाओं का पूजा स्थल भी रहा है। कई प्रमुख पेशवा अपनी विजय यात्रा से पहले इस मंदिर में जाकर भगवान शिव की उपासना करते थे। यहां स्थापित शिवलिंग की पूजा करने से उनकी मनोकामना पूरी होती थी। यही वजह है कि आज भी इस औघडऩाथ शिव मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं।

फाल्गुन में शिवभक्त चढ़ाते हैं कांवड़

मान्यता है कि औघडऩाथ शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू हैं। यही कारण है कि सच्चे मन से की गई मनोकामना औघडऩाथ बाबा बहुत जल्द पूरी करते हैं। इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना का कार्य प्राचीन काल से होता आ रहा है। श्रावण और फाल्गुन महीने में शिवरात्रि के दिन यहां बड़ी संख्या में शिवभक्त पहुंचकर कांवड़ चढ़ाते हैं। भगवान शिव का औघडऩाथ शिव मंदिर मेरठ के कैंटोन्मेंट क्षेत्र में स्थित है। औघडऩाथ शिव मंदिर एक प्राचीन सिद्ध पीठ है। अनंतकाल से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने वाले औघड़दानी शिवस्वरूप हैं। इसी कारण इसका नाम औघडऩाथ शिव मंदिर पड़ गया।

काली पल्टन के नाम से भी जाना जाता है मंदिर

औघडऩाथ मंदिर को काली पल्टन के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल में भारतीय सेना को काली पल्टन कहा जाता था। यह मंदिर काली पल्टन क्षेत्र में होने के कारण काली पल्टन मंदिर के नाम से भी विख्यात है। मंदिर की स्थापना का कोई निश्चित समय उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह मंदिर सन 1857 से पहले ख्याति प्राप्त वंदनीय स्थल के रूप में विद्यमान था। आज इस मंदिर में वर्ष भर में लाखों लोग दर्शन करने पहुंचते हैं। सबसे अधिक भीड़ फाल्गुन और श्रावण  माह में शिवरात्रि के दौरान यहां दिखाई देती है। सोमवार के दिन ही नहीं रोजाना यहां सुबह-शाम श्रद्धालु पहुंचते हैं।

हर मंदिर से मान्यताएं और ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी होती है पर कुछ अनूठी जानकारियाँ दर्शन करने पर और अधिक उत्सुकता से भर देती है ऐसा ही अनूठा मंदिर है काली पलटन/ औघड़नाथ का मंदिर।

संकलनकर्ता
डॉ प्रीति सुराना
संस्थापक एवं संपादक
अन्तरा शब्दशक्ति

No comments:

Post a Comment