*स्मृति शेष होने से पहले का शेष जीवन,...!*
पंख थे
परवाज़ की हिम्मत भी थी
और
चाहत भी
सामने खुला आसमान भी था
और
आज़ादी भी
पर हौव्वे बहुत सारे थे,..!
जैसे
हवा में प्रदूषण है
ओज़ोन पर्त में छेद है
विमानों की उड़ान बढ़ने से उड़ान में भी हादसे का खतरा है
गिद्ध और चीलों ने कब्जा कर रखा है उन्मुक्त पंछियों के हिस्से के आसमान पर
दैव्य स्थानों पर दरिंदों और असुरों ने भेष बदल कर घुसपैठ कर रखी है,..!
बस फिर क्या था
कमज़ोर पैरों से
भागमभाग, रेलमपेल,
और अपनों के बीच ही जीत की प्रतियोगिता में
शामिल होना नामुमकिन था,..!
खैर!
डरकर हार अब भी नहीं मानी है मैंने
मन कल्पनाओं की उड़ान भरता है
हवाएँ प्रदूषित भी हो तो बाधक नहीं है
क्योंकि उसने हवाओं से निभाए निःस्वार्थ मधुर संबंध हमेशा
कलम अविरल भावों में बहती है
क्योंकि भावनाओं ने न कभी दूसरों का रास्ता रोका न खुद रुकी,..!
सुनो!
बरकरार है
रुह में आज भी पाकीज़गी
जो बाहरी प्रदूषणों से लड़कर
जी लेना चाहती है
*स्मृति शेष होने से पहले का शेष जीवन,...!*
प्रीति सुराना
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