Friday 22 November 2019

हस्तिनापुर एक ऐतिहासिक भूमि

हस्तिनापुर एक ऐतिहासिक भूमि

मेरठ यात्रा के दौरान हस्तिनापुर में मंदिरों के दर्शन का सौभाग्य मिला। कुछ जानकारियाँ यात्रा के दौरान और अध्ययन में मिली उसे एक आलेख के रूप में संकलित करने का छोटा सा प्रयास है।

हस्तिनापुर, जिला मेरठ से 37 किमी एवं दिल्ली से 100 किमी की दूरी पर स्थित है, जो मेरठ-बिजनौर रोड से जुड़ा हुआ है। यह स्थान राजसी, भव्यता, शाही संघर्षों एवं महाभारत के पांडवों और कौरवों के रियासतों का सक्षात गवाह है। विदुर्र टीला, पांडेश्वर मंदिर, बारादरी, द्रोणादेश्वर मंदिर, कर्ण मंदिर, द्रौपदी घाट एवं कामा घाट आदि जैसे स्थल पूरे हस्तिनापुर में फैले हुए हैं। 

सिख समुदायों के लिए हस्तिनापुर का महत्व

 हस्तिनापुर सिख समुदायों के लिए भी एक बड़ा मान्यता का केंद्र है, क्योंकि यह पंच प्यारे भाई धर्म सिंह का जन्म स्थल भी है, जो गुरु गोविंद सिंह जी के पांच शिष्यों में से एक थें। सिख धर्म के लिए सैफपुर कर्मचनपुर का गुरुद्वारा श्रद्धालुओं के लिए बहुत बड़ा तीर्थ केंद्र है।
पवित्र एवं ऐतिहासिक स्थान होने के अतिरिक्त, हस्तिनापुर वन्यजीव के लिए भी काफी प्रख्यात है, क्योंकि यहां पास में अभ्यारण्य वनस्पति की विभिन्न प्रजातियों से सुसज्जित है एवं साथ ही वन्यजीव पर्यटन एवं एडवेंचर, ईको-टूरिज्म एवं संबंधित गतिविधियों का भी केंद्र है। हस्तिनापुर में रहने एवं खाने की बेहतर सुविधा भी उपलब्ध है। वन विभाग का रेस्ट हाउस एवं पी.डब्लू.डी. का अतिथि गृह भी यहां पर स्थित है, साथ ही जैन धर्मशाला भी स्थित है, जहां रुकने की बेहतर सुविधा उपलब्ध है।

जैन तीर्थ में हस्तिनापुर का महत्व

उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थाें में शुमार है हस्तिनापुर का जैन तीर्थ स्थल। कमल मंदिर में विराजमान कल्पवृक्ष भगवान महावीर की अतिशयकारी, मनोहारी एवं अवगाहना प्रमाण सवा दस फुट ऊंची खड़गासन प्रतिमा और नवग्रह शांति जिनंदिर में विराजमान भगवन्तों की नौ प्रतिमाओं के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालुगण आते हैं। इसके अलावा हस्तिनापुर स्थित जम्बूद्वीप तीर्थ में विराजमान 31-31 फुट उतुंग भगवान शांतिनाथ, कुंथनाथ और अरहनाथ की विशाल खड़गासन प्रतिमाएं जैन धर्मावलम्बियों के बीच आकर्षण का केंद्र हैं। डा. जीवन प्रकाश जैन के अनुसार तीर्थ जैन भूमियों के इतिहास में यह प्रथम अवसर हस्तिनापुर को प्राप्त है कि जब यहां पर भगवान शांतिनाथ-कुंथुनाथ -अरहनाथ जैसे तीन-तीन पद के धारी महान तीर्थकरों की साक्षात जन्मभूमि जम्बूद्वीप स्थल पर ग्रेनाइट पाषाण की 31 फुट उतुंग तीन विशाल प्रतिमाएं राष्टीय स्तर के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ विराजमान की गई।
जैन तीर्थस्थलों में हस्तिनापुर का अपना अलग ही महत्व है। भगवान ऋषभदेव के प्रथम पुत्र, प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। राजा भरत की राजधानी हस्तिानपुर थी। इसके अलावा महाभारत से भी हस्तिनापुर का इतिहास जुड़ा हुआ है। जैन धर्म के 24 तीर्थकरों में से 16-17-18 वें तीन तीर्थकर श्री शांतिनाथ, कुुंथुनाथ और अरहनाथ का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था। जैन धर्म के अनुसार करोड़ों वर्ष पूर्व यहां पर इन तीर्थकरों के चार-चार कल्याणक हुए थे और तीर्थंकर, चक्रवर्ती, कामदेव इन तीन पदों के धारक। इन तीनों महापुरूषों ने हस्तिनापुर को राजधानी बनाकर यहां से छह खंड का राज्य संचालित किया था। जैन धर्मावंबियों के अनुसार दिल्ली और हस्तिनापुर तब एक ही माना जाता था। जवाहर लाल नेहरू ने भी अपनी किताब डिस्कवरी आफ इंडिया के पृष्ठ 107 पर इसका उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि आज जिसे हम दिल्ली के नाम से जानते हैं वह कभी हस्तिनापुर एवं इंद्रप्रस्थ कहलाता था। अतः दिल्ली और हस्तिनापुर को ही एक दूसरे के पूरक ही समझा जाता हैै।
वास्तुकला के विभिन्न अद्भुत उदाहरण एवं जैन धर्म के विभिन्न मान्यताओं के केंद्र भी यहां पर भ्रमण योग्य हैं। जम्बूद्वीप परिसर में ओम मंदिर, सुमेरू पर्वत एवं कमल मंदिर एवं मंदिर का पूरा परिसर भ्रमण योग्य है, भगवान वासुुपूज्य मंदिर, भगवान शांतिनाथ मंदिर के अलावा विद्यमान बीस तीर्थंकर मंदिर, सहस्त्रकूट मंदिर, श्वेतांबर जैन मंदिर, प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर, अष्टापद जैन मंदिर एवं श्री कैलाश पर्वत जैन मंदिर आदि
भगवान ऋषभदेव मंदिर के दर्शन कर जैन धर्म के लोग अपने आप को धन्य मानते हैं।

इतिहास में हस्तिनापुर का महत्व

हस्तिनापुर का इतिहास महाभारत के काल से शुरू होता है। यह भी शास्त्रों में गजपुर, हस्तिनापुर, नागपुर, असंदिवत, ब्रह्मस्थल, शांति नगर और कुंजरपुर आदि के रूप में वर्णित है। सम्राट अशोक के पौत्र, राजा सम्प्रति ने यहाँ अपने साम्राज्य के दौरान कई मंदिरों का निर्माण किया है। प्राचीन मंदिर और स्तूप आज यहाँ नहीं हैं। हस्तिनापुर शहर पवित्र नदी गंगा के किनारे पर स्थित था।
महाभारत काल में हस्तिनापुर कुरु वंश के राजाओं की राजधानी थी। हिंदू इतिहास में हस्तिनापुर के लिए पहला संदर्भ सम्राट भरत की राजधानी के रूप में आता है। महा काव्य महाभारत में वर्णित घटनाए हस्तिनापुर में घटी घटनाओ पर आधारित है।
हस्तिनापुर मुगल शासक बाबर ने भारत पर आक्रमण के दौरान हमला किया था और वहाँ के मंदिरों पर तोपों से बमबारी की थी। मुग़ल काल में हस्तिनापुर पर नैन सिंह का शासन था जिसने हस्तिनापुर में और चारों ओर कई मंदिरों का निर्माण किया।

यहां आज भी भूमि में दफन है पांडवों का किला, महल, मंदिर और अन्य अवशेष।
 
पौराणिक किंवदंती 

सम्राट भरत के समय में पुरुवंशी वृहत्क्षत्र के पुत्र राजा हस्तिन् हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई। कहते हैं कि हस्तिनापुर से पहले उनके राज्य की राजधानी खांडवप्रस्थ हुआ करती थी। लेकिन जल प्रलय के कारण यह राजधानी उजाड़ हो गई तब राजा हस्ति ने नई राजधानी बनाकर उसका नाम हस्तिनापुर रखा।

हस्तिन् के पश्चात् अजामीढ़, दक्ष, संवरण और कुरु क्रमानुसार हस्तिनापुर में राज्य करते रहे। कुरु के वंश में ही आगे चलकर राजा शांतनु हुए जहां से इतिहास ने करवट ली। शांतनु के पौत्र पांडु तथा धृतराष्ट्र हुए जिनके पुत्र पांडव और कौरवों ने मिलकर राज्य के बंटवारे के लिए महाभारत का युद्ध किया। पुराणों में कहा गया है कि जब गंगा की बाढ़ के कारण यह राजधानी नष्ट हो गई तब  पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़कर कौशाम्बी चले गए थे। 
पुराणों में राजा हस्तिन् के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा थे तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था।
राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ऋग्वेद में वर्णित 'दाशराज्ञ युद्ध' से जानते हैं। राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का विस्तार हुआ। राजा सुदास के बाद संवरण के पुत्र कुरु ने शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह राज्य संयुक्त रूप से 'कुरु-पंचाल' कहलाया। परन्तु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतन्त्र हो गया।
 
पुरातत्वों के उत्खनन से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर की प्राचीन बस्ती लगभग 1000 ईसा पूर्व से पहले की थी और यह कई सदियों तक स्थित रही। दूसरी बस्ती लगभग 90 ईसा पूर्व में बसाई गई थी, जो 300 ईसा पूर्व तक रही। तीसरी बस्ती 200 ई.पू. से लगभग 200 ईस्वी तक विद्धमान थी और अंतिम बस्ती 11वीं से 14वीं शती तक विद्यमान रही। अब यहां कहीं कहीं बस्ती के अवशेष हैं और प्राचीन हस्तिनापुर के अवशेष भी बिखरे पड़े हैं। वहां भूमि में दफन पांडवों का विशालकाय एक किला भी है जो देखरेख के अभाव में नष्ट होता जा रहा है। इस किले के अंदर ही महल, मंदिर और अन्य इमारते हैं।
हस्तिनापुर में खुदाई १९५० के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बी.बी. लाल द्वारा किया गया।

संकलनकर्ता
डॉ प्रीति समकित सुराना
संस्थापक एवं संपादक
अन्तरा शब्दशक्ति

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