मैं शक्ति स्वरूपा
मैं दुर्गा, मैं शक्ति स्वरूपा
जगत जननी भी मैं ही हूँ
नौ रूपों में अधिष्ठायिका।
शैलपुत्री या ब्रह्मचारिणी
चन्द्रघंटा या कूष्माण्डा
स्कंदमाता या कात्यायनी।
कालरात्रि या महागौरी
सिद्धिदात्री भी नाम है
जगकल्याण कर्तव्य मेरा।
त्रिया चरित्र कहकर सदा से
करता है जग प्रताड़ित जिसे
हर स्त्री में मेरा ही अंश है।
अन्याय से लड़ती ही रहूंगी
समय-समय पर बहुरूप में
मेरे कर्तव्य पूर्ति से मनु वंश है।
मत पूजो पर रौंदों नहीं
सम्मान दो स्त्रीत्व को
स्त्री बिना तय सृष्टि का विध्वंश है।
इसी में मेरी पूजा भक्ति
सुन लो ये एक संदेश है
या मान लो आदेश है,...!
प्रीति सुराना
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