तेरी भी मेरी भी
नादानियाँ सारी भुला दें तेरी भी मेरी भी,
याद सिर्फ खुशियाँ रहे तेरी भी मेरी भी।
गलतियाँ जो भी हुई वो महज गलतियाँ थी,
समझ ज़रा कच्ची रही तेरी भी मेरी भी।
बातें कुछ ऐसी हुई जो तोड़ गई रिश्ते-नाते,
कमजोरियाँ दिखने लगी तेरी भी मेरी भी।
मैं जो मेरे भीतर था, मैं जो तेरे भीतर था,
दुख की बस ये ही वजह थी तेरी भी मेरी भी।
दूर हो मतभेद सारे, दूर हो मन की थकन,
जिंदगी अनमोल है यह तेरी भी मेरी भी।
प्रीति सुराना
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना गुरुवार १२ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मैं जो मेरे भीतर था, मैं जो तेरे भीतर था,
ReplyDeleteदुख की बस ये ही वजह थी तेरी भी मेरी भी।
वाह!!!
बहुत लाजवाब...