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हँसकर गले लगाया खुद को हर ज़ख्म हर दर्द भुलाकर, कोशिश की खुद से मिलने की खुद के पास बुलाकर, खुशी की तलाश में अब तक व्यर्थ ही समय गँवाया, जब दी थी खुद ही वजह दर्द को कि जाए वो रुलाकर।
प्रीति सुराना
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