Sunday, 25 December 2011

एक अफ़साना


हां याद है मुझको, वो हर एक अफ़साना,
यूं हौले से तुम्हारा मेरी जिंदगी में आना,
वो सारी बातें,वो चंद मुलाकातें,
फिर मिलने की तमन्ना और जुदा हो जाना,

चोरी से चुपके से मेरा दीदार करना,
नजरें मिली तो तुम्हारा मुस्कुराना,
फिर चेहरे से मेरे नजरें न हटाना,
मेरा नजरें चुराना और पलकें झुकाना,
हां याद है मुझको, वो हर एक अफ़साना,

हर रोज़ मेरी रहगुजर से गुजरना,
एक झलक की चाह में तुम्हारा तरसना,
मुझसे मिलने को पहरो मेरा इंतजार करना,
मेरा तनहा बैठे कोई गीत गुनगुनाना,
हां याद है मुझको, वो हर एक अफ़साना,

मुझसे मिलने पर ढेरों गिले शिकवे करना,
और तुम्हारा झूठ मूठ रूठ जाना,
मैं रूठ जाती तो मुझको मनाना,
और मेरा तुमको बेहद सताना,
हां याद है मुझको, वो हर एक अफ़साना,

मेरे गम को अपना दर्द-ए-दिल बताना,
मेरे लिए अपनी खुशियां लुटाना,
सबसे मुझको अपनी मंजिल बताना,
और तनहाई में मेरा आंसू बहाना,
हां याद है मुझको, वो हर एक अफ़साना,

जो सजाए थे मिलकर उन सपनों का बिखरना,
वो मेरा सिसकना और तुम्हारा तड़पना,
वो जिंदगी में मायूसी और जमाने से नफरत,
मरने की चाहत में  यूंही जिए चले जाना,
हां याद है मुझको, वो हर एक अफ़साना,

यूं हौले से तुम्हारा मेरी जिंदगी में आना,
वो सारी बातें,वो चंद मुलाकातें,
फिर मिलने की तमन्ना और जुदा हो जाना,........प्रीति सुराना

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