Friday, 8 February 2019

सहेजने की आदत डालें

परिवर्तन संसार का नियम है। जो आज है वो कल हो जरूरी नहीं। दिन का रात में बदलना रात का फिर दिन हो जाना इससे बड़ा कोई और उदाहरण किसी भी जीवित व्यक्ति के लिए नहीं हो सकता। कल और कल के लिए आज का होना अनिवार्य है। जो कुछ भी अभी घटित हो रहा वही पल पल बीता हुआ कल बनेगा और जो आने वाला पल है वही भविष्य है और चाहे बीता हुआ हो या आने वाला कल उसके लिए जरूरी है आज का होना ठीक एक परिकल्पना को सच करने के लिये आवश्यक सामग्री की तरह। ये बात और है को परिकल्पना के साकार होते ही वह एक खोज, एक याद, एक अतीत की उपलब्धि बनकर रह जाएगा। खैर,..!
समय ये सोचने का है कि आज और अभी के अलावा सब कुछ परिवर्तनशील है तो आज और अभी को सार्थक कैसे बनाया जाए। कैसे जीये कि जीवन में मलाल न राह जाए। परिवर्तन का समय कोई नियत काल नहीं है बल्कि पल प्रतिपल है। अभी अभी ही साल बदला है, अभी अभी ही बसंत की आहट आई है। माघ में ही फागुनी बयार की दूर से आती सनसनाहट सुनाई देने लगी है। फाग रंगों की बहार लेकर आएगा , बासंती मधुमास जीवन मे उम्मीदों के रंग भरकर इठलाता हुआ गुजर जाएगा। सोचना ये है गुजरते हुए हर पल को यादगार, आदर्श और अमिट बनाने के लिए क्या किया जाए। क्यों न सहेजने की एक बहुत खूबसूरत आदत डाल ली जाए। आज जो भी घट रहा है पारिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, मानसिक और शारीरिक स्तर पर हर पल जो परिवर्तित हो रहा है उसे कुछ इस तरह लिख लिया जाए कि जो बदला वो क्या था और जो बदलाव हमारी ओर से अपेक्षित था वो क्या था? क्या जो अपेक्षित था वो सही और उसके लिए किए गए प्रयास पर्याप्त थे, या जो हुआ वो सटीक था, नहीं था तो क्यों नहीं।
यकीन मानिए, दस में से एक ने भी सिर्फ दैनिक जीवन के अनुभवों को डायरी पर लिख दिया तो उनका यह कार्य आने वाले कालखंड में मार्गदर्शक दस्तावेज बन जाएगा जो कि ये बताएगा कि अपेक्षा उपेक्षित सिर्फ और सिर्फ समर्पित हो कर किये गए प्रयासों या समर्पण में कमी के कारण होती रही है। फिर बात सपनो की हो या अपनो की, देश या समाज की हो या कल और आज की।
बस एक सोच है ये की सहेजा जाए जीवन से जुड़ी हर अच्छी बुरी घटना, सही गलत की बातों और हालातों को। कल हमारे बाद जब यादों की संदूक खोली जाए, तो धुंधली तस्वीरों और पीले पड़े कागजों में बिखरा पड़ा हो वो हर पल जो सचमुच बदला जा सकता था, शायद बीच का एक भी पल बदल दिया जाता तो सब कुछ, कुछ और होता।
इन्हीं संभावनाओं का नाम जीवन है किंतु उससे भी बड़ा एक सच ये भी है कि परिवर्तन संसार का नियम है पर दिन का रात में और रात का दिन में बदलने का क्रम और काल निश्चित है और जब भी उलझेंगे इन रहस्यों में अंतिम जवाब होगा ये तो नियति का खेल है, और हम आप फिर तलाशने लगेंगे आज और अभी को छोड़कर आने वाला कल, क्रम चलता रहेगा, विचारों का आरोह और अवरोह भी सतत याद दिलाता रहेगा कि परिवर्तन संसार का नियम है और जो न समझ पाएं वो रहस्य नियति,.. अतः चलते रहें जब तक संभव है, और हो सके तो सहेजने की आदत डालें चाहे तस्वीरों में चाहे डायरी के पन्नो पर या सोशल साइट्स पर,...😊👍

प्रीति सुराना

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