साँझ ढले
नीढ़ की ओर
लौटते हुए पंछियों को
देखते हुए
लौटा मेरा मन
कुछ पल
खुद की ओर,..
आकर चंद लम्हों में दे गया
एक नई सीख,
और मैं जो अकसर कहती थी
जिंदगी में खुशियाँ नहीं तो क्या जीना?
आज सोचने लगी
जिंदगी रही तो ढूंढ ही लूँगी
खुशियों के नये रास्ते,..
जीना है
जीना तो है
जीना तो है ही
फिर जिंदगी से नफरत नहीं
प्रेम करके देखूँ कुछ पल??
जीने के लिये ये नया रास्ता
या नया बहाना भी अच्छा है ना,...???
प्रीति सुराना
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