उस दिन
हमारे झगड़े के बाद
सुबह-सुबह
सिर में तेज़ दर्द था,
जाने क्यों मन किया
खुद के लिए
कड़क अदरक की चाय खुद बना लूँ,
जबकि अकसर ऐसा होता नहीं,...!
पर हिम्मत करके उठी
अपनी इच्छानुसार
पानी, चायपत्ती, चीनी,
कुटी हुई सी अदरक
खौलता रहा पानी सब के साथ
और मैं ना जाने कौन सी दुनिया में
जहाँ थी मैं
पानी सी तरल,
चायपत्ती सा विश्वास,
चीनी सी मिठास,
सुख दुख की मद्धम आंच,
गुस्से में कुटी हुई
गलतफहमियों की अदरक,
खौलता रहा सबकुछ जाने कब तक,..
अचानक तंद्रा टूटी
डाला थोड़ा सा दूध
माना खौलते मन में
छटाक भर दूध ने शीतलता का काम किया,..
कुछ देर उन भावों को भी
उबलने दिया मन के साथ चूल्हे पर भी,
पर्याप्त पकने पर
दिल के निशान वाले मग में
छान लिया उबलती चाय को
जिसमें अब भी
विश्वास की चाय का रंग,
प्रेम की चीनी की मिठास,
मेरी तरलता का पानी,
तुम सी दूध की शीतलता,
गुस्से और शिकायतों की अदरक का रस मिश्रित था,
जो पर्याप्त था सिरदर्द को दूर करने के लिए,..
और हाँ!
छानकर निकला अपशिष्ट भी व्यर्थ न जाने दिया,
आँगन में रखी तुलसी में उसे खाद के रूप में डाल दिया है
तुलसी जो महकेगी, पनपेगी और वातावरण के साथ रक्तशोधक बनकर मुझे भी राहत देगी,...
सुनो!
आजकल
मैं चाय खुद बनाने लगी हूँ
सारे मनोभाव वही होते हैं
वैसे ही उबलती है मेरी तरलता आज भी
जिसमें आज भी दूध की मात्रा, चाय का रंग, चीनी की मिठास, अदरक का आक्रोश मौजूद होता है
बदला है तो सिर्फ ये
कि अब चाय में मैं रोज डालती हूँ
तुलसी की कुछ पत्तियाँ भी
जो अपशिष्ट युक्त उर्वरा मिट्टी में पोषित भी है,..
और
यह रक्तशोधक, पीड़ा निवारक होने के साथ-साथ
मेरे लिए जीवनदायिनी भी है,
तुम्हारी मौजूदगी का अहसास लिए,...
प्रीति सुराना
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