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अनवरत मैं कह रही हूँ मैं सतत ही ढह रही हूँ
ज्वार या भाटे बनी मैं उठ रही या बह रही हूँ
बिखरते अरमान मन के ऊपर से तह रही हूँ
वाकिफ हूँ हर सितम से रोज़ पीड़ा सह रही हूँ
'प्रीत' जीवन कठिन है पर मैं जिंदा तो रह रही हूँ!!
प्रीति सुराना
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