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कुछ इस तरह लिया है दर्द ने गिरफ्त में अपनी, कि अपने ही वज़ूद में तलाशना मुश्किल है खुद को, पोर-पोर, जिस्मोज़हन सिर्फ तड़प, तन्हाई, मायूसी, आँसू, और बस यादें, यादें, और यादें,...! (खुशी के पलों की यादें भी रुलाती हैं गम से ज्यादा)
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